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क्या हो अगर जर्मनी में सिर्फ महिलाएं ही वोट डालें?

कीरा शाख्ट
८ मार्च २०२४

अगर सिर्फ महिलाएं वोट डालें, तो जर्मनी की राजनीतिक तस्वीर कैसी दिखेगी? कौन सी पार्टियां सत्ता में होंगी और राजनीतिक फैसलों में क्या अंतर देखने को मिल सकता है?

जर्मनी के एक मतदान केंद्र में वोट डालती एक महिला.
जर्मनी में महिलाओं को साल 1918 से मतदान का अधिकार है. राजनीति में महिलाओं की सुमचित भागीदारी और पर्याप्त प्रतिनिधित्व बेहद जरूरी है. तस्वीर: Michael Schick/IMAGO

जर्मनी में महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1918 में मिला था. उस समय देश में वाइमर रिपब्लिक का संविधान लागू था. इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लोकतांत्रिक जर्मनी में महिलाओं को हमेशा चुनाव में शामिल होने का समान अधिकार रहा है. आज महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के बराबर है.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहला संसदीय चुनाव सिर्फ पश्चिमी जर्मनी में ही हुआ था. उस चुनाव के बाद से पार्टी को लेकर महिलाओं की पसंद काफी बदल गई है.

महिलाएं किन पार्टियों को वोट देती हैं

कई सालों तक पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी रूढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय थी. 1950-60 के दशक में कुल महिला मतदाताओं में आधे से ज्यादा ने इस पार्टी का समर्थन किया.

हागेन यूनिवर्सिटी में ‘राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व' पर शोध करने वाली शोधार्थी एल्के वीषमान ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुमकिन है कि पार्टी द्वारा ईसाई और पारिवारिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने की वजह से ऐसा हुआ हो."

वीषमान आगे बताती हैं, "जैसे-जैसे महिलाओं की जिंदगी में धर्म, परिवार और घरेलू जिंदगी की अहमियत कम होने लगी, यह रुझान बदलने लगा. मेरा मानना है कि कुछ समय तक, भले ही सीडीयू की नीतियां महिलाओं के पक्ष में नहीं थीं फिर भी अंगेला मैर्केल की वजह से पार्टी को महिलाओं का समर्थन मिलता रहा. मैर्केल युग समाप्त होते ही सीडीयू के प्रति महिलाओं का लगाव भी कम हो गया."

साल 2021 में हुए चुनाव में यह बात साफ तौर पर देखने को मिली. मैर्केल यह चुनाव नहीं लड़ीं और सीडीयू को महिला मतदाताओं का काफी कम समर्थन मिला.

सिर्फ महिलाएं जर्मन सांसदों को चुनतीं, तो?

एल्के वीषमान कहती हैं, "पिछले चुनाव में महिलाओं ने काफी प्रगतिशील तरीके से मतदान किया. अगर 2021 में सिर्फ महिलाओं को वोट डालने का अधिकार होता, तो चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसडीपी) के पास ग्रीन पार्टी की तरह ही एक फीसदी अधिक अंक होता. वहीं, धुर दक्षिणपंथी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) और नव-उदारवादी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) को सीटें गंवानी पड़तीं."

वीषमान कहती हैं कि यह पार्टियों के राजनीतिक कार्यक्रमों पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा, "महिलाओं की जिंदगी अब भी पुरुषों से अलग है. उन पर काम और करियर के साथ-साथ बच्चे और घर की ज्यादा जिम्मेदारी होती है. उदाहरण के लिए, महिलाएं नए राजमार्ग की तुलना में सार्वजनिक परिवहन को अधिक महत्व दे सकती हैं. इससे लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली एसपीडी, ग्रीन या लेफ्ट जैसी प्रगतिशील पार्टियों को मिलने वाला वोट बढ़ सकता है."

वैसे तो आम महिलाएं सिर्फ उम्मीद कर सकती हैं कि उनकी चुनी हुई पार्टी उनके मुताबिक बदलाव लाएगी. वहीं दूसरी तरफ, संसद में मौजूद महिला प्रतिनिधियों के पास सीधे तौर पर बदलाव लाने की ताकत होती है.

यह तस्वीर 1919 की है. यह पहली बार था, जब जर्मनी में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला था. तस्वीर: ullstein bild

क्या जर्मनी की संसद में पर्याप्त महिलाएं हैं?

पिछले दशकों में जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ एक तिहाई के आसपास रही है. कोन्स्टांस यूनिवर्सिटी में शोधार्थी एलिसा डेस-हेल्बिग 'पार्टी की राजनीति और राजनीतिक प्रतिनिधित्व' पर शोध कर रही हैं.

वह विशेष रूप से राजनीतिक तौर पर हाशिए पर रहने वाले समूहों के प्रतिनिधित्व पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. उन्होंने बताया, "संसद में महिलाओं के अनुभवों और विचारों को सही तरीके से दिखाने के लिए वहां अलग-अलग पृष्ठभूमि की महिलाओं की अच्छी-खासी संख्या होना भी जरूरी है." उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि महिलाएं राजनीतिक एजेंडे में ऐसे विषयों को शामिल कर सकती हैं, जिन्हें पुरुष-प्रधान संसद में नजरअंदाज किया जा सकता है.

यह बात विशेष तौर पर तब प्रासंगिक लगती है, जब महिलाओं के अधिकारों की बात आती है. 1957 में महिला सांसदों की संख्या 10 फीसदी से भी कम थी. जर्मनी में इस बात को लेकर मतदान हुआ था कि क्या पति को शादी से जुड़े सभी फैसलों में आखिरी फैसला लेने का हक मिलना चाहिए. महिलाओं के वोटों ने ही इस भेदभावपूर्ण कानून को खत्म कर दिया. पुरुष सांसदों का बहुमत इस कानून को बनाए रखना चाहता था, जबकि 74 फीसदी महिलाओं ने इसे खत्म करने के लिए मतदान किया.

कुछ बदलावों के लिए महिलाओं की बहुत बड़ी हिस्सेदारी की आवश्यकता थी. उदाहरण के लिए, शादी के दौरान बलात्कार को अपराध मानने में जर्मनी को 1997 तक का समय लग गया. इसके लिए महिला सांसदों ने लंबे समय तक संघर्ष किया. पार्टी की नीतियों के खिलाफ जाकर वोटिंग की. इस मामले पर 1980 के दशक की शुरुआत से संसद में लाए गए कई मसौदा कानूनों को खारिज कर दिया गया था.

महिलाओं के हित में कानून बनाने का प्रयास करने वाली सांसदों में से एक एसपीडी की ऊला श्मिट ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा, "आखिरकार हमारे पास संसद में महिलाएं पर्याप्त संख्या में थीं. 10 फीसदी से कम महिला प्रतिनिधि होने की वजह से पार्टी की नीति से अलग जाकर दबाव बनाना मुश्किल होता है."

वहीं, 90 फीसदी से अधिक महिला सांसदों ने नए कानून के पक्ष में मतदान किया. जिन लोगों ने इसके खिलाफ मतदान किया, उनमें कई प्रमुख पुरुष राजनेता शामिल थे. इनमें सीडीयू पार्टी के वर्तमान नेता फ्राइडरिष मेर्त्स भी शामिल थे.  

पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू कई सालों तक पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय थी. तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance

किन पार्टियों से कितने महिला सांसद हैं?

वर्तमान संसद की 736 सीटों में से एक तिहाई से कुछ अधिक, यानी 263 सीटों पर महिलाएं हैं. उनमें से ज्यादातर वामपंथी विचारधारा वाली पार्टियों से हैं. ग्रीन पार्टी से ही 70 महिलाएं हैं. जबकि धुर-दक्षिणपंथी एएफडी से सिर्फ नौ महिलाएं हैं.

डेस-हेल्बिग ने डीडब्ल्यू को बताया, "वामपंथी झुकाव वाली पार्टियां लैंगिक समानता पर ज्यादा जोर देती हैं. इसलिए उन्होंने महिलाओं को संसद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. यह बात संसद में महिलाओं की संख्या से साफ तौर पर जाहिर होती है."

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जर्मनी में अलग-अलग पार्टियों ने अलग-अलग तरीके अपनाए हैं. उदाहरण के लिए, ग्रीन पार्टी ने 1980 के दशक में ही सभी राजनीतिक पदों के लिए 50 फीसदी महिलाओं का कोटा अनिवार्य कर दिया था.

इसी तरह, एसपीडी पार्टी में अभी 40 फीसदी का कोटा है. सीडीयू पार्टी ने हाल ही में धीरे-धीरे बढ़ने वाले कोटा प्रणाली को अपनाया है, जबकि एफडीपी और एएफडी जैसी पार्टियां अभी भी महिलाओं के लिए किसी भी तरह के कोटे का पूरी तरह से विरोध करती हैं.

अगर सिर्फ महिला सांसद मतदान करें, तो?

जर्मनी में किसी भी नीतिगत फैसले पर वोट करते समय सांसद सख्ती से पार्टी के विचार का पालन करते हैं. इससे यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि अगर महिला सांसद अपने विवेक से कोई फैसला लेना चाहें, तो वे कैसे मतदान करेंगी. हालांकि, कुछ ऐतिहासिक फैसले पार्टी लाइन से हटकर लिए गए हैं. इनसे पता चलता है कि महिलाएं अपने पार्टी के पुरुष साथियों से अलग राय रख सकती हैं.

उदाहरण के लिए, समलैंगिक विवाह को लेकर जर्मनी में 2017 में मतदान हुआ था. इस मतदान में सिर्फ 54 फीसदी पुरुष सांसदों ने सभी लिंगों के जोड़ों के लिए विवाह के पक्ष में मतदान किया. वहीं, 76 फीसदी महिला सांसदों ने इसे मंजूरी दी. 

जर्मनी में 2023 में इच्छा मृत्यु (चिकित्सकों की सहायता से मौत) को नियंत्रित करने और वैध बनाने के लिए सुधार लाने की कोशिश नाकाम रही. इस मतदान में 375 सांसदों ने इसके खिलाफ, जबकि 286 ने इसके पक्ष में मतदान किया. हालांकि, अगर सिर्फ महिला सांसदों का ही फैसला होता, तो कानून पास हो जाता. उस स्थिति में 128 महिला सांसदों ने इसके पक्ष में, जबकि 105 ने विरोध में मतदान किया था.

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कोविड-19 महामारी के दौरान जर्मनी की संसद में इस बात पर बहस हो रही थी कि क्या 60 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण अनिवार्य किया जाए. साथ ही 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों के लिए टीकाकरण परामर्श अनिवार्य करने का भी प्रस्ताव था.

अगर सिर्फ महिला सांसदों ने ही मतदान किया होता, तो यह कानून बन जाता क्योंकि उस स्थिति में 62 फीसदी महिला सांसद इसके पक्ष में थीं. हालांकि, पूरे संसद में सिर्फ 44 फीसदी सांसद ही इसके पक्ष में थे, इसलिए यह कानून पारित नहीं हो सका. जर्मनी में सिर्फ कुछ खास स्वास्थ्य क्षेत्रों को छोड़कर टीकाकरण अभी भी स्वैच्छिक है.

स्विस-जर्मन शोध टीम की रिसर्च में यह भी पाया गया कि महिला सांसद अपने पूरे करियर में लैंगिक समानता के मुद्दों की अधिक वकालत करती हैं. वे अपने पुरुष साथियों की तुलना में लैंगिग मुद्दों से जुड़े विषयों पर ज्यादा चर्चा और सवाल करती हैं.

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