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800 रुपये में बच्ची को बेचा: इंसानियत का दम घोंटती गरीबी

चारु कार्तिकेय
५ जुलाई २०२३

ओडिशा में नौ महीने की एक बच्ची को बेचने के लिए पुलिस ने उसकी मां समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है. गरीब मां-बाप द्वारा बच्चों को बेचने का सिलसिला लगातार चल रहा है. बच्चे गुलामी, देह व्यापार में धकेले जा रहे हैं.

बेटी बचाओ मुहिम का पोस्टर
बेटी बचाओ मुहिम का पोस्टरतस्वीर: RAVEENDRAN/AFP/Getty Images

पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा के मयूरभंज में रहने वाली 25 साल की कर्मी मुर्मू ने अपनी नौ महीने की बेटी को 800 रुपये में एक निसंतान दंपती को बेच दिया था. पुलिस ने उस महिला, बच्ची को खरीदने वाले पति-पत्नी और उनके बीच मध्यस्थता कराने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है.

बच्ची के माता-पिता की एक और बेटी है जिसकी उम्र सात साल है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक महिला ने पत्रकारों को बताया कि उसके पास दूसरी बच्ची का ख्याल रखने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उसने उसे बेच दिया.

पिता ने की शिकायत

गिरफ्तार लोगों में से फूलमनी मरांडी ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने और उनके पति ने बच्ची को इसलिए खरीदा क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी. पुलिस के मुताबिक कर्मी मुर्मू ने अपनी बच्ची को तब बेचा जब उसके पति मुसु मुर्मू काम करने तमिलनाडु गए हुए थे.

सेक्स वर्करों के बच्चे

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मुसु मुर्मू को वापस लौटने पर जब इस बात का पता चला तो उन्होंने खुद ही पुलिस में शिकायत कर दी. मयूरभंज चाइल्ड वेलफेयर समिति के अध्यक्ष जगदीश चंद्र घड़ई ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि बच्ची को उसके पिता और दादी के हवाले कर दिया गया है.

देश के कई राज्यों में गरीब माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को बेचने के इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं. कोविड-19 महामारी के बाद इस तरह के मामले पहले से ज्यादा सामने आ रहे हैं. कई अध्ययनों में सामने आया है कि महामारी और लॉकडाउन ने करोड़ों गरीब परिवारों को और गहरी गरीबी में धकेल दिया.

हर आठवें मिनट में लापता होता है एक बच्चा

सरकारी एजेंसियों के पास माता-पिता द्वारा बच्चों को बेच देने के मामलों के सटीक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय आपराधिक क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक देश में हर साल 70,000 से भी ज्यादा बच्चे लापता हो रहे हैं, यानी हर आठवें मिनट में एक बच्चा. और यह सरकारी आंकड़े हैं, यानी सिर्फ वो मामले जिनकी शिकायत पुलिस से की गई.

देश में हर साल 70,000 से भी ज्यादा बच्चे लापता हो रहे हैंतस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance

माना जाता है कि लापता बच्चों की असली संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है. बच्चे बेचे जाएं या लापता हो जाएं, उनमें से बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी की जाती है.

उसके बाद उन्हें जबरदस्ती भीख मांगने, आधुनिक गुलामी और देह व्यापार जैसे धंधों में लगा दिया जाता है. एनसीआरबी के आंकड़े दिखाते हैं कि 2019 में देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों समेत) के जितने भी मामले थे, उनमें से सबसे ज्यादा मामले जबरन श्रम, देह व्यापार, घरों में जबरन काम और जबरन शादी के थे.

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