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विदेशी डॉक्टरों से कैसे पेश आता है जर्मनी

मोनीर गाएदी
२७ अप्रैल २०२४

जर्मनी में काम करने वाले आप्रवासी डॉक्टरों की संख्या बढ़ रही है लेकिन उनके रास्ते में कई चुनौतियां हैं. भाषा इनमें से एक है लेकिन इस लिस्ट में और भी बाते हैं.

Ausländische Ärzte in Deutschland
तस्वीर: Andreas Arnold/dpa/picture alliance

जर्मनी, आप्रवासी डॉक्टरों के पसंदीदा देश के रूप में उभर रहा है. यह स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रहे देश के लिए आस जगाने वाली बात है.

जर्मनी में विदेशी डॉक्टरों की संख्या में उछाल आया है. जर्मन मेडिकल एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी में काम कर रहे करीब 60,000 डॉक्टर ऐसे हैं जिनके पास नागरिकता नहीं है. यह कुल स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या का 12 फीसदी हैं. ज्यादातर विदेशी डॉक्टर यूरोपीय मूल के हैं या फिर मध्य-एशियाई देशों से आए हैं. इनमें सबसे बड़ी संख्या सीरिया से आने वाले डॉक्टरों की है.

इससे पहले कि वे किसी अस्पताल में काम शुरू कर सकें, यहां आने वाले डॉक्टरों को प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस लेने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना होता है. इसमें दो परीक्षाएं देने के साथ ही जर्मन भाषा में पेशेवर दक्षता भी हासिल करनी होती है.

ज्यादातर डॉक्टरों का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया इतनी थकाऊ है कि "डॉक्टरों को यहां काम करने के लिए और ज्यादा मदद की जरूरत है. जिसके बिना जर्मनी की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं."

राइनलैंड-पालाटिनेट स्टेट मेडिकल एसोसिएशन के महानिदेशक युर्गेन होफार्ट ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि डॉक्टरों को सस्ते मजदूर समझने के बजाए जितनी जल्दी हो सके व्यवस्था का हिस्सा बनाने की कोशिशें करनी चाहिए."

विदेशी डॉक्टरों को प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस लेने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना होता हैतस्वीर: Uwe Umstätter/Westend61/IMAGO

जर्मनी में डॉक्टरों की कमी क्यों

अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में मेडिकल स्टाफ की कमी इस हद तक है कि कुछ देशों में लोगों के लिए अपने घर के पास किसी स्वास्थ्यकर्मी तक पहुंच भी मुश्किल हो जाएगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी प्रति 1000 लोगों पर 4.53 डॉक्टर हैं. यह पूरे यूरोप में काम कर रहे 18,20,000 डॉक्टरों का 30 फीसदी है. फिलहाल यह संख्या पर्याप्त है लेकिन इसमें तेजी से गिरावट आ रही है.

यूरोपीय संघ के दूसरे देशों की तरह जर्मनी में बहुत जल्द मेडिकल स्टाफ की भयंकर कमी हो सकती है. बूढ़ी होती आबादी वाले देश के लिए यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.

2023 तक, जर्मनी में काम करने वाले 41 फीसदी डॉक्टर 60 साल से ऊपर के थे, जबकि 28 फीसदी स्पेशलिस्ट भी इसी उम्र के हैं. अनुमान लगाया गया है कि अगले तीन साल के अंदर 5,000 से 8,000 मेडिकल प्रैक्टिस बंद हो जाएंगी क्योंकि डॉक्टर रिटायर होंगे. चूंकि इनकी जगह लेने वाले युवा ग्रैजुएट डॉक्टरों की कमी है तो जर्मनी में कम वक्त के लिए विदेशी डॉक्टरों की भर्तियों से काम चलाना होगा.

यूरोपीय संघ के दूसरे देशों की तरह जर्मनी में बहुत जल्द मेडिकल स्टाफ की भयंकर कमी हो सकती हैतस्वीर: Pond5 Images/IMAGO

विदेशी डॉक्टरों का अनुभव

जर्मनी में 18 साल से काम कर रहे फाबरी बेका कहते हैं कि "जर्मनी में सभी मेडिकल पेशेवरों पर भरोसा किया जाता है और कद्र की जाती है, जिसमें विदेशी भी शामिल हैं. मेरे अनुभव में, विदेशी डॉक्टर जोशीले होते हैं, जो सीखना चाहते हैं और एक दूसरे देश के स्वास्थ्य ढांचे में काम करने की चुनौती से जूझना चाहते हैं. बेका मानते हैं कि बदले में यह देश उन्हें काम और जिंदगी के बीच बेहतर संतुलन और सीखने का मौका देता है."

उनका कहना है, "जर्मनी के स्वास्थ्य सुविधा ढांचें में, कई देशों के मुकाबले ज्यादा पैसा लगाया जा रहा है, जैसे मेरे अपने देश कोसोवो में. एक मेडिकल प्रोफेशनल के तौर पर, इसका मतलब है कि हम अत्याधुनिक मशीनों और बेहतर स्टैंडर्ड के साथ काम करते हैं." बेका यह भी बताते हैं कि आमतौर पर विदेशी डॉक्टरों को इमरजेंसी रूम में काम करना होता है या फिर अस्पतालों में रहकर ही ड्यूटी करनी पड़ती है, जहां काम का बोझ ज्यादा होता है. हालांकि आपके काम और जिंदगी के संतुलन के लिए बेहतर है क्योंकि आप अच्छा कमाते हैं और मनोरंजन के लिए काफी वक्त होता है."

हालांकि बेका यह भी कहते हैं कि ढांचागत सुविधाओं के अभाव में विदेशी डॉक्टरों को अपने करियर के विकास में देसी डॉक्टरों के मुकाबले ज्यादा मेहनत करनी होती है. जैसे कि विदेशी डॉक्टरों को अपनी मेडिकल प्रैक्टिस या क्लिनिक शुरु करने के लिए देसी डॉक्टरों की तुलना में कहीं लंबा वक्त लगता है. इसकी वजह है जर्मनी की कानूनी जरूरतें. यहां केवल बुनियादी मेडिकल ट्रेनिंग को मान्यता है लेकिन स्पेशलिस्ट के तौर पर काम करने के लिए विशेष ट्रेनिंग लेनी होती है जिसकी पढ़ाई में सालों लगते हैं.

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भाषा की बाधाएं

होफार्ट कहते हैं कि मरीजों से ऐसी शिकायतें आती हैं कि विदेशी डॉक्टर हमेशा उनकी बात नहीं समझ पाते. "बार-बार मुझे मरीजों के सवालों भरे फोन आते हैं. क्या आप हमें बता सकते हैं ऐसा अस्पताल जहां डॉक्टर ठीक से जर्मन बोलते हैं. मुझे लगातार ऐसी मेडिकल रिपोर्टें भी मिलती हैं जिन्हें पूरी तरह समझना बहुत मुश्किल लगता है." होफार्ट बताते हैं कि विदेशों से आए डॉक्टरों को शुरुआती ट्रेनिंग प्रक्रिया के दौरान भाषा का टेस्ट देना होता है जिसमें बुनियादी जानकारी का परीक्षण होता है लेकिन यह लोगों की स्थानीय बोलियों और बोलने के तरीकों पर लागू नहीं होता.

म्यूनिख स्थित लुडविष माक्सीमिलियन यूनिवर्सिटी के 2016 के एक शोध में यह बात सामने आई कि जर्मनी आने वाले विदेशी डॉक्टर यहां भाषा की समस्या के साथ ही सांस्कृतिक और क्लीनिकल सिस्टम के बारे में जानकारी की कमी से भी जूझते हैं. इसी तरह 2022 में यूनिवर्सिटी ऑफ बाजल की एक स्टडी में, दो बड़े अस्पतालों के अध्ययन में यह बात सामने आई कि डॉक्टरों और नर्सों समेत आप्रवासी स्वास्थ्यकर्मी भाषाई और नस्लभेदी भेदभाव भी झेलते हैं.

हालांकि बेका ने डॉक्टरों को जर्मनी में समाहित करने की प्रक्रिया और भाषा सीखने में दिक्कत जैसी बातें नहीं देखीं. उन्होंने बताया, "ज्यादातर डॉक्टर जल्द भाषा सीख लेते हैं. बल्कि ऐसा भी होता है कि डॉक्टर अच्छी जर्मन बोलें लेकिन, उनके मरीज उतनी अच्छी भाषा ना समझते हों, इसलिए भाषा सिर्फ डॉक्टरों की समस्या नहीं है."

होफार्ट कहते हैं कि इस तरह की दिक्कतों को सुलझाने का एक तरीका है कि जर्मनी में पहले से काम कर रहे डॉक्टर, बाहर से आए अपने नए साथियों का ख्याल रखें और उन्हें यहां की व्यवस्थाओं के बारे में पूरी जानकारी दें."

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